किसी भी विचार की थाह में ना जाना कतिपय पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहना यह कैसी नैतिकता है , समझ नहीं आता। यदि कोई विचार आता है तो उसके पीछे कतिपय कारण, लेखक के पूरी की पूरी सोंच या समझ, उसके तथ्य, तथ्यों की व्याख्या, लेखक का इतिहास बोध, उसकी मान्यताये और वह लक्ष्य भी निहित रहते हैं जिसके लिए किसी भी विचार का प्रतिपादन किया जाता है। आजकल हमारे देश में विचारों की हत्या करनें की कोशिशें अपनें चरम पर है यदि आप मोदी जी से सम्बद्ध देश हित में कोई बात कहते हैं तो आप मोदी भक्तो के शिकार हो जाते हैं । यदि आप भ्रस्टाचार पर आक्षेप करते है तो इसमें सलग्न लोगों के शिकार हो जाते है, यदि आप नारीवाद पर सकारात्मक टिप्पडी भी करते हैं तो तथाकथित नारीवादियो , पुरुष स्त्रायन वर्गं के शिकार हो जाते है और भूल से भी आप सामाजिक न्याय की बात करते हैं तो विशेषाधिकारवादी लोग सामने आ जाते हैं । फिर विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसी। आखिर कतिपय नकारात्मक प्रकृति के लोग जब सब महसूस करते हुए भी सत्य के साथ खड़े नहीं होना चाहते तब बड़ा दुःख होता है। लोग अपनी आत्मा के साथ भी न्याय क्यों नहीं करना चाहते?
कतिपय अनुत्तरित।।।
कतिपय अनुत्तरित।।।
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