Jul 30, 2018

।। नेट पास उम्मीदवार घूमेंगे पीएचडी वालों की होगी मौज।।


करीब दो दशक पहले शिक्षकों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए शुरू किए गए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) को अब शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चत करने के नाम पर ही गैर-जरूरी बनाया जा रहा है. वर्ष 2021 से लागू होने जा रही विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता संबंधी नई नियमावली के तहत पीएचडी धारक उम्मीदवार बिना नेट उत्तीर्ण किए असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे। अर्थात उच्च शिक्षा के संवर्धन हेतु प्रोफेसर की योग्यता के मापदंड में जो परिवर्तन किया है वह इतना श्रेष्ठ परिवर्तन है कि जो लोग नेट उत्तीर्ण हैं उनको विश्वविद्यालयों में चयन नहीं किया जाएगा बल्कि जो कैंडिडेट Ph.D कर लेंगे या पीएचडी किए हुए होंगे। उनकी विशेष योग्यता व समर्पण को समझते हुए सरकार उन्हें सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति प्रदान करेगी व उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएगी। क्योंकि पीएचडी किये हुए लोगो के नेट उत्तीर्ण करते ही या अनिवार्य किये जाने से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता गिर रही है। तब प्रश्न ये उठता है कि आखिर नेट का एग्जाम क्यो शुरू किया गया था। उच्च शिक्षा की गुणवत्ता गिराने के लिए या बढ़ाने हेतु, इससे भी बड़ी बात कि अधिकतर यह वह लोग हैं जो कभी अपनी अयोग्यता के चलते नेट उत्तीर्ण नही हुए या कर पाये, थक हार कर के किसी प्रकार से गुरुकृपा से पीएचडी कर लिए हैं। सरकार की नजर में अब वह योग्य व अधिक गुणवत्ता युक्त हो गए हैं । 95% पीएचडी भारत मे कैसे होती हैं सभी लोग जानते हैं। हालांकि बहुत सी पीएचडी वास्तव में विश्वस्तरीय भी होती हैं और गुणवत्तापूर्ण भी। लेकिन बहुतायत में पीएचडी धारक स्तरहीन अधिक ही हैं जो खुद यूजीसी भी कई बार चिन्हित कर चुका है। यह तथ्य किसी भी उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति से छिपा हुआ नहीं है। लेकिन अब यह अभ्यर्थी जो नेट नहीं उत्तीर्ण कर पा रहे हैं लेकिन सरकार की नजर में उपयुक्त हैं वह ही विश्वविद्यालय हेतु पात्र भी होंगे क्यो? यह एक महत्वपूर्ण बात है और विडंबना देखिए इस देश में लगभग 5 से 8 लाख नेट उत्तीर्ण लोग मारे मारे फिर रहे हैं जिनमे से 1 या दो लाख पीएचडी भी है और फिर भी इस समय पूरे देश के कालेजो व विश्विद्यालयो में लगभग डेढ़ लाख नियमित पड़ रिक्त हैं । आख़िर जब नेट उत्तीर्ण लोग पीएचडी कर सकते हैं तो पीएचडी वाले नेट क्यों नही कर सकते। क्या दिक्कत है। जब सरकार को एक साथ दोनो ही डिग्री धारक पर्याप्त मिल रहे हैं तो एकतरफा पीएचडी वालो को लाभ किसलिए , वह भी गुणवत्ता के नामपर गुणवत्ता पर ध्यान क्यो नही है? यह साजिश किसको लाभ पहुंचाने के लिए हो रही है?
नेट क्या है राष्ट्रीय स्तर की एक राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा जिसका उद्देश्य था प्रत्येक शिक्षक में विषय के प्रति समुचित ज्ञान का मूल्यांकन करने की परीक्षा।
पीएचडी क्या है किसी एक टॉपिक पर शोध । अध्ययन-अध्यापन को बेहतर विषयपरक बनाने हेतु नेट की परीक्षा प्रारम्भ की गई थी। बाद में जैसे माध्यमिक व बेसिक हेतु टेट। ताकि नूनतम योग्यता का निर्धारण हो सके। क्योंकि जो नेट उम्मीदवार होगा उसने पूरा सिलेबस पढ़ा होगा पूरे पाठ्यक्रम को तैयार किया होगा, उसके अनुरूप राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण होगा, । लेकिन वह विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने के योग्य नहीं होगा ?।
घालमेल यहां पर इतना ही नहीं है और भी है कि शिक्षकों की नियुक्ति हेतु कॉलेजो की ही भांति हैं राज्य व केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी एक पारदर्शी चयन आयोग हो उस पर किसी का ध्यान नही है। यह पीएचडी धारक अब एक इंटरव्यू से ही प्रोफेसर भी बन जाएंगे क्योंकि विश्वविद्यालय में चयन हेतु लिखित परीक्षा या स्क्रीनिग तक नही होती है और बिना कोई एग्जाम जोर जुगाड़ से यह भी पौ बारह।
वर्तमान में विश्वविद्यालयो में भाई-भतीजावाद, नाते रिश्तेदारी, गुरु शिष्य परम्परा, के या जुगाड़ू प्रोफेसर ही अधिकतर पाए जाते हैं । आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कालेजो का चयन प्रकरण चर्चा का विषय भी है। सबक भी। यानी अब मान लिया जाए कि, कुछ लोग अपनी निकम्मी औलादों और रिश्तेदारों को विश्वविद्यालयों और कालेजों में पहुँचाने के लिए ये कुचक्र रच रहें हैं । यही जिम्मेदार लोग देश और शिक्षा के दुश्मन भी हैं । आखिर किसी भी विद्वान को NET पास करने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। दूसरे अनिवार्य योग्यता NET+Ph.D दोनो ही अनिवार्य क्यो नही कर दिया जाना च्चाहिये, जिससे इस तरह के प्रश्न चिन्ह ही समाप्त हो जाए। आखिर पीएचडी किये हुए लोग नेट क्यो न पास करें। दिक्कत क्या है नेट करने में। व नेट किये हुए लोग पीएचडी भी करे।
केंद्र सरकार ( UGC NET ) की पात्रता परीक्षा और राज्य सरकार ( SLET ) की पात्रता परीक्षा पास युवा आज पूरे देश मे बेरोजगार घूम रहे है और सरकारे कहती हैं कि कि उसे योग्य कैंडिडेट नही मिल रहे है । अरे कोई पूछे इनसे, कि इन्ही के द्वारा निर्धारित परीक्षा पास करने वाला युवा अगर योग्य नही है तो फिर कौन योग्य है ।
कहीं यह पूरी साजिश आपने बच्चों को रोजगार दिलाने के लिए तो नही रची जा रही है क्योंकि विदेशों में पीएचडी तो इन्ही अधिकारियों और नेताओं के बच्चे कर सकते है ना कि एक मिडिल क्लास परिवार ।
अंततोगत्वा विश्वविद्यालय व कालेजो में चयन आयोग द्वारा ही हों व सहायक प्रोफेसर के चयन हेतु अनिवार्य योग्यता NET+Ph.D दोनो ही अनिवार्य कर दिया जाना च्चाहिये, जिससे इस तरह के प्रश्न चिन्ह ही समाप्त हो जाए। पीएचडी किये हुए लोग नेट पास करें। दिक्कत क्या है नेट करने में। व नेट किये हुए लोग पीएचडी भी करे।
सहमति असहमति का स्वागत है।

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