बिहार के परिणाम आने के बाद कोई कुछ भी कहे लेकिन यह बात उन्हें खुले ह्रदय से माननी ही चाहिए कि ये मोदी जी की ही हार है। उन्होंने अपने चुनावी वादे पूरे न करने की जो कसम खायी है और यह हार मोदी जी के भक्तों के मुह में तमाचा है जो मोदी जी की कथनी और करनी का मूल्यांकन ही नहीं करना चाहते हैं और हाशिये से गायब लालू जी जैसे राजनेता जीत रहे हैं। यह देश के लिए दुर्भाग्य पूर्ण है लेकिन बिहार के वोटरों पर ऊँगली उठाने वाले तथाकथित लोग अपने आप में ही अपना मूल्यांकन करें। मतदाताओं पर अनर्गल टिप्पणी न करें क्योंकि नितीश जी ने बिहार में वास्तव में काम किया है और वह सभी को दिख भी रहा है यह एक सच्चाई है जो वहां की जनता जानती है। आज भूमंडलीकरण का युग है जो दिखता है वही बिकता है और अभी डेढ़ साल में मोदी जी का कुछ "अच्छे दिन" दिख नहीं रहा है। बिहार के चुनाव सिर्फ और सिर्फ मोदी जी के नाम पर लड़े गए थे वह ही इस चुनाव के मुख्या चेहरा थे यह देश का बच्चा बच्चा जानता है। इसलिए यदि तठस्थ होकर विचार करेंगे तो ये सिर्फ और सिर्फ मोदी जी की ही हार है। वैचारिक सहमति और असहमति बौद्धिकता का एक आवश्यक कारक है। लेकिन मोदी जी यदि अपने चुनावी वादे पूरे नहीं करेंगे तो आगे के चुनावों में भी इसी तरह उनकी हार होगी और लोकसभा चुनावों में 2004 की तरह अटल जी से भी बुरी तरह हारेंगे क्योंकि भारत की जनता को उन्होंने 2014 में जो सपने दिखाए हैं उनसे आज अब वह मुकरने की स्थिति में नहीं है चाहे कितना ही मिडिया का दोहन किया जाये। प्रधानमंत्री पद का वही महत्व है जो उस पद पर बैठा व्यक्ति उसे प्रदान करें और देश की जनता जान गयी है की मोदी जी सिर्फ और सिर्फ आजकल गप्प बाजी कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री होकर चुनाव प्रचार में अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। ठोस काम नहीं। वह हर रैली में नितीश जी से ढाई साल के काम का जवाब माग रहे थे लेकिन अपने डेढ़ साल के काम का जवाब नहीं दे रहे थे। भारत के प्रधानमंत्री केवल पिछड़े दलितों के लिए जान की बाजी लगा रहे हैं तो क्या दूसरों का ये देश नहीं है। अन्य धर्म के लोगों समेत सवर्णों की जिम्मेदारी क्या प्रधानमंत्री जी आपकी नहीं है? राजनीति की यही 'गंदी बातें' हैं जो लोकतंत्र को लंबे समय से गंधवा रही हैं , सत्ता पाने की लालसा या सत्ता शक्ति के प्रदर्शन का अहंकार कहीं न कहीं राजनीति का स्तर गिराता जा रहा है। अभी महगाई चरम में है और सरकार को महसूस नहीं हो रही और अनवरत महगाई के स्तर को नकारात्मक गिरावट दिखाकर डेढ़ वर्ष से भाजपा सरकार डेटा में छेड़खानी करके कर्मचारियों को महगाई भत्ता कम देने का काम कर रही है और 7 वें वेतन आयोग की जब रिपोर्ट आ जायेगी तब सरकारी कर्मचारी और उनका परिवार भी मोदी से विमुख ही हो जायेगा क्योंकि वह कर्मचारियों को भी कुछ देने के मूड में प्रतीत नहीं हो रहे है, ये बात भी शायद मोदी जी भूल गए। इनकम टैक्स की लिमिट बढ़ानें में देरी मध्यवर्ग से भाजपा को दूर कर रही है और आम लोग तो महगाई से और भी परेशान ही हैं। शिक्षा का बजट कम कर दिया गया है ICSSR, UGC पैसे की कमी से जूझ रहे है केंद्र सरकार ने अकेले पेट्रोलियम उत्पादों से 34000 करोड़ का लाभ कमाया है गैस सब्सीडी छोड़ने के विज्ञापन में करोड़ों रुपया खर्च किया है जबकि सब्सिडी छोड़ने से मात्र सरकार को लगभग 100 करोड़ का ही लाभ हुआ है। ऐसे और भी योजनाओं में हो रहा है । मीडीया को विज्ञापन देकर मोदीमय बनाया जा रहा है। लेकिन अब समय आ गया है। मोदी जी को विदेश भ्रमण छोड़कर देश में ही समय बिताना चाहिए और देश की समस्याओं को दूर करनें हेतु देश की समस्यायों का निरिक्षण कर कारक सम्बंधित लोगों पर कठोर कारवाही करनी चाहिए। जिससे लोग भ्र्ष्टाचार करनें से डरें। भ्रष्टाचारियों के मन में भय पैदा हो। देश में राजमार्ग टूटे हैं और सरकार पोषित गुंडों द्वारा टोल टैक्स लिया जा रहा है, लोग महगाई से परेशान हैं, जातिगत वैमनश्य दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है, समान नागरिक संहिता की पहल अब तो खुद कोर्ट कर रहा है फिर देरी क्यों आदि अनेक जमीनी सच्चाइयाँ हैं जिनका निदान हो। लोगों को भ्रस्टाचार मुक्त भारत महसूस हो। लोगों को वास्तव में अच्छा लगे अच्छे दिन आवें। अन्यथा उत्तर प्रदेश में इससे भी बड़ी हार से भाजपा को कोई नहीं बचा पायेगा और सारे मोदीभक्त सर पीटते रह जायेगे।।। दुर्भाग्य से लेखक भी मोदी जी का समर्थक है ।।।
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