Jul 30, 2018

।।एक विचार।। 3

संत आसाराम का हश्र देखकर मन सोचने को विवश हो ही जाता है कि ये लोग सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, अपितु कही न कहीं लाखो पुरुषों के भीतर की दमित इच्छाओं और यौन विकृतियों की बेशर्म अभिव्यक्ति भी हैं। यह भाव बहुत से पुरुषों के अंदर निहित है या पाया जाता हैं। यह अलग बात है कि धन, प्रभुत्व, साधन व अवसर के अभाव में ज्यादातर लोगों के भीतर ये घुट-घुटकर दम तोड़ देते हैं क्योंकि यह सब प्राप्त होने के बाद ढोंगी बाबाओं और संतों की ही नहीं, ज्यादातर नवधनाढ्यों, ग्लैमर उद्योग के लोगों, राजनेताओं और अफसरों की दो ही महत्वाकांक्षाएं होती हैं - ऐश्वर्य के तमाम साधन जुटाना और ज्यादा से ज्यादा स्त्रियों से शारीरिक आनंद उठाना अर्थात शारीरिक और मानसिक शोषण , वे स्त्रियां उनके लिए व्यक्ति नहीं, रोमांच, पुरुष अहंकार को सहलाने का ज़रिया और स्टेटस सिंबल मात्र होती हैं। ठीक वैसे ही जैसे राजतांत्रिक व्यवस्थाओं में रनिवास और हरम में रानियों और दासियों की संख्या किसी भी राजा, बादशाह या सामंत की सामाजिक प्रतिष्ठा तय किया करती थी। आज इक्कीसवी सदी में भी तमाम प्रतिबंधों के बावजूद दुनिया के ज्यादातर मर्दों की आंतरिक इच्छा कमोबेश ऐसी ही है।कतिपय जिन लोगों के पास साधन हैं, उनमें से ज्यादातर लोग नैतिकता औऱ कानून को धत्ता बताकर यही कर रहे हैं। उनमें से कतिपय नेता व राम रहीम और आसाराम जैसे गिनती के लोग पकडे जाते हैं, जिनका भांडा अबतक नहीं फूटा, वे सब पुण्यात्मा हैं। 
लेकिन समाज का एक पक्ष यह भी ही कि कतिपय धनाढ़्य स्त्रियाँ भी अपनी मादकता बिखेरती, धनिकों की ही तलाश में रहती हैं? देखा देखी कामवाली बाइ भी सुबह सुबह वही श्रृंगार करती है और सामर्थ्य पुरूष के साथ रहती है। आज के पतन का जितना पुरुष ज़िम्मेदार है उतना ही कतिपय स्त्रियाँ भी, क्योंकि उनमें आनन्द है, तृष्णा है ओर भोग एक स्वाभाविक व्यवस्था जो प्रकृति द्वारा निर्मित है। वैसे भी नदियों की उन्मादकता समुद्र मे ही शान्त होती है।
आसाराम, रामरहीम आज के और पुराने चन्द्रास्वामी में कोई अंतर नहीं। लेकिन एकतरफा पुरूष जाति को जिम्मेवार बनाया जाना 100 प्रतिशत कतई उचित नही प्रतीत होता। कई लोगो का मानना होता है कि यह सच कतई नही है कि केवल पुरूषो द्वारा ही नारी का शोषण किया जाता है। क्योंकि महिला द्वारा भी कई बार कानूनों की आड़ में पुरूषो को शोषित किया जाता है। कतिपय महिलाऐ रोकर मनोव्यथा तब व्यक्त करती है जब उनका स्वार्थ सिद्ध नही होता है। कतिपय महिलाएं भी निहित स्वार्थ के लिए पुरूषों का इस्तेमाल करती हैं। सहमति से सेक्स के बाद या लिव इन रिलेशनशिप के बाद भी बलात्कार आदि के मुकदमे दर्ज करा देती है और न्यायालय में कई केसों में ऐसा सामने आया भी है।
सुंदर लगना नारीत्व का गुण है, लेकिन सुन्दर वस्तु बनना जड़ता का प्रतीक है, जीवन्त मनुष्य का नहीं। स्त्री अवश्य ही सुन्दर लगे अपितु सुन्दर दिखने का प्रयास करे पर, पुरुष के लिए भोग्या बनने के लिए नहीं अपितु इसलिए कि सुन्दरता एक गुण है, विशेषता है, स्त्री का सुन्दर व आकर्षक लगना, उसका स्वभाव है, गुण है , एक मानवीय बोध है।
स्त्री की अपनी राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और यौनिक अस्मिता एक अति आवश्यक कारक है। अंततोगत्वा इन सब विषयो के मानकों के निर्धारण के कतिपय प्राकृतिक कारण भी हैं। अतः अत्यधिक एक्स्ट्रापोलेशन कर सिर्फ एक पक्ष के अस्तित्त्व को ही जकड़ देना अनुचित है।
सहमति और असहमति का स्वागत है,,,,
***लेख का उद्देश्य किसी की किसी की भावनाओं को आहत करना कतई नहीं है।।

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